13 December, 2008

दिल्ली तेरी गलियों का...

तारीखें वही रहती हैं

साल दर साल

वही हम और तुम भी...

बदल जाती है तो बस

जिंदगी की रफ़्तार...

खो जाती है वो फुर्सत वाली शामें

और वो अलसाई दिल्ली की सड़कें

सर्द रातों में हाथ पकड़ कर घूमना...

खो जाते हैं हम और तुम

अनजाने शहर में

अजनबी लोगों के बीच...

रह जाती है बस

एक याद वाली पगडण्डी

एक आधा बांटा हुआ चाँद

और अलाव के इर्द गिर्द

गाये हुए गीतों के कतरे...

छः मंजिल सीढियों पर रेस लगाना

रात के teen बजे पराठे खाना

और चिल्लड़ गिन कर झगड़ना

कॉफी या सिगरेट खरीदने के बारे में...

कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना

और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में

हम दोनों का...

आज उन्ही तारीखों में

मैं हूँ, तुम भी हो...जिंदगी भी है

अगर कुछ खो गया है तो बस

वो शहर ...जहाँ हमें मुहब्बत हुयी थी

दिल्ली, तेरी गलियों का

वो इश्क याद आता है...

19 comments:

  1. वाह पूजा जी शब्‍दों को कितना ढंग से शक्‍ल दी है आपने अच्‍छी कविता

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  2. "एक याद वाली पगडण्डी

    एक आधा बांटा हुआ चाँद"

    "कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना

    और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में"

    ReplyDelete
  3. दिल्ली, तेरी गलियों का

    वो इश्क याद आता है................
    बीते हुए लम्हे....
    गुजरे हुए पल.....
    बिखरी हुई यादें.....
    थोडी-सी कसक.....
    थोडी सी-सी महक....
    डूबी हुई कोई सिसकी....
    कोई खुशनुमा-सी शाम.....
    या दर्द में डूबा संगीत..........
    सुरमई से कुछ भीने-भीने रंग.....
    यादों से विभोर होता हुआ मन.......
    मचलती हुई कई धड़कनें....
    फड़कती हुई शरीर की कुछ नसें.....
    जाने क्या कहता तो है मन....
    जाने क्या बुनता हुआ-सा रहता है तन....
    बहुत दिनों पहले की तो ये बातें थीं......
    आज तक ये क्यूँ जलती हुई-सी रहती है....
    ये आग मचलती हुई-सी क्यूँ रहती है.....
    अगर प्यार कुछ नहीं तो बुझ ही जाए ना....
    और अगर कुछ है तो आग लगाये ना...
    बरसों पहले बुझ चुकी जो आग है....
    वो अब तलक दिखायी कैसे देती है....
    और हमारी तन्हाईयों में उसकी सायं-सायं
    की गूँज सुनाई क्यूँ देती है....!!
    प्यार अमर है तो पास आए ना....
    और क्षणिक है तो मिट जाए ना......
    मगर इस तरह आ-आकर हमें रुलाये ना....!!

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  4. इसे पढ़कर कुछ जानी-अनजानी, चाही-अनचाही यादों ने घेरा डाल दिया..
    कविता बहुत सुंदर..

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  5. एक बात कहनी भूल गया.. आपने भी आधे चांद की बात कहकर कहीं किसी के चांद कि चोरी तो नहीं कर ली ना? विस्तार से ई-मेल में बताता हूं.. क्योंकि मैं बेकार का ब्लौग जगत में एक और बहस नहीं चाहता हूं.. ;)
    वैसे जिसके लिये लिखा है वो शायद समझ जायेंगे.. :)

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  6. बहुत अच्छी कविता किसी के एक मुकतक के साथ बधाई....
    दिल में अपने कोई बोझ न भारी रखिए,
    जिंदगी जंग है,इस जंग को जारी रखिए।
    शहर नया है दोस्त बन रखिए,
    दिल मिले न मिले हाथ मिलाए रखिए।

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  7. ऐसी लेने पढ़कर चाहे-अनचाहे यादें घेर लेती हैं.
    फ़िल्म के लिए शुभकामनायें !

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  8. बेहद सुन्दर रचना ! पुरानी यादों को खंगालती हुई !

    राम राम !

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  9. एक याद वाली पगडण्डी

    एक आधा बांटा हुआ चाँद

    और अलाव के इर्द गिर्द

    गाये हुए गीतों के कतरे...

    छः मंजिल सीढियों पर रेस लगाना

    रात के teen बजे पराठे खाना

    और चिल्लड़ गिन कर झगड़ना

    कॉफी या सिगरेट खरीदने के बारे में...
    कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना
    और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में
    हम दोनों का...
    आज उन्ही तारीखों में
    मैं हूँ, तुम भी हो...जिंदगी भी है
    अगर कुछ खो गया है तो बस
    वो शहर ...जहाँ हमें मुहब्बत हुयी थी
    दिल्ली, तेरी गलियों का
    वो इश्क याद आता है...



    puja !YOU are at your best when you write in this flow.....rather very honestly...i am fan of parveen shaaqir too..who said ...

    चाँद ..

    एक से मुसाफिर हैं
    एक सा मुक़द्दर हे
    मैं ज़मीन पर तनहा
    ओर वोह आसमान में



    keep flowing .you are awesome today.

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  10. वाह शब्दों से क्या सुर बाधा हैं। कई बार पढ गया।
    छः मंजिल सीढियों पर रेस लगाना
    रात के teen बजे पराठे खाना
    और चिल्लड़ गिन कर झगड़ना
    कॉफी या सिगरेट खरीदने के बारे में...
    कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना
    और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में
    हम दोनों का...

    पुरानी यादों में ले जाता हुआ। अदभुत।

    ReplyDelete
  11. छः मंजिल सीढियों पर रेस लगाना

    रात के teen बजे पराठे खाना

    और चिल्लड़ गिन कर झगड़ना

    कॉफी या सिगरेट खरीदने के बारे में...

    कोहरे से तुम्हें आते हुए देखना

    और फ़िर गुम हो जाना उसी कोहरे में

    बहुत ही सुंदर रचना है !!!

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  12. "रह जाती है बस

    एक याद वाली पगडण्डी

    एक आधा बांटा हुआ चाँद

    और अलाव के इर्द गिर्द

    गाये हुए गीतों के कतरे..."

    संवेदित पंक्तियां . भावना के गहरे साहचर्य के साथ लिखी गयी हैं यह.
    धन्यवाद.

    ReplyDelete
  13. wow.. the only word after reading your poem.. :-) bahut sundar likha.. kuch hame bhi sikha dijiye na ki bhawnao ko shabd kaise dete hai?

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  14. मैं हूँ, तुम भी हो...जिंदगी भी है

    अगर कुछ खो गया है तो बस

    वो शहर ...जहाँ हमें मुहब्बत हुयी थी

    दिल्ली, तेरी गलियों का

    वो इश्क याद आता है...


    जबरदस्त रचना
    infact बहुत ज्यादा अच्छी कविता

    ReplyDelete
  15. aaj unhi tarikhon men

    main hoon, tum bhi ho...jindagi bhi hai

    agar kuchh kho gaya hai to bas

    vo shahar ...jahan hamen muhabbat huyi thi

    dilli, teri galiyon ka

    vo ishk yad aata hai...


    bahut hi umdaa.....outstanding :)

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  16. क्या बात है, आपने तो पुराने दिन याद दिला दिए.

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  17. commenting anything will be doing injustice to the emotions behind this...

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  18. ये बात ...."बस जिन्दगी की रफ्तार बदल जाती है"..ये हमेशा तेज ही नही रहती..हमेशा स्लो भी नही चलती पर हाँ...एक सी नही रहती...कभी.!

    "एक याद वाली पगडण्डी

    एक आधा बांटा हुआ चाँद

    और अलाव के इर्द गिर्द
    गाये हुए गीतों के कतरे."

    सर्द मौसम में दूर तक दिखता भी नही तो बस दो ही ...! गाये हुए गीतों के कतरे...ये लाईन ..! उन कतरों में कितना कुछ सिमटा पड़ा है ना..सोचता हूँ, जबतक दिल्ली में हूँ और कैम्पस में हूँ..ओढ़-बिछा लूं..हर वक़्त को..!

    पूजा जी को आपको खूब सारा थैंक्स..! और हाँ..सागर भाई..तू तो यार..कमालहै..! पता है होगी ये लोगों के लिए कविता...अगर मै गलत नही हूँ तो मेरे लिए तो यह सुबहो-शाम की अलमस्ती है... तो क्या हुआ..पी.एच.डी. की सिनोप्सिस दो बार प्रेजेंट कर चूका हूँ पर फिर भी अभी अप्रूव्ड नही हुई.....:)

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