18 November, 2008

मैं और तुम

मेरे तुम्हारे बीच

उग आया है

कंटीला मौन का जंगल

जाने कब खो गयीं

शब्दों की राहें

खिलखिलाहटों की पगडंडियाँ

ऊपर नज़र आता है

स्याह अँधेरा

नहीं दिखता है चाँद

नहीं दिखती तारों सी तुम्हारी आँखें

काँटों में

उलझ जाता है तुम्हारा स्पर्श

ग़लतफ़हमी की बेल

लिपट जाती है पैरों से

और मैं नहीं जा पाती तुम्हारे करीब

बहुत तेज़ होता जाता है

झींगुरों का शोर

मैं नहीं सुन पाती तुम्हारी धड़कन

पैरों में लोटते हैं

यादों के सर्प

काटने को तत्पर

शायद मेरी मृत्यु पर ही

निकले तुम्हारे गले से एक चीख

और तुम पा जाओ

शब्द और जीवन ...

15 comments:

  1. पूजा उपाध्याय जी
    नमस्कार
    मैं और तुम के माध्यम से आपने
    मौन और गलतफहमी के सन्दर्भ में
    काबिलेतारीफ अभिव्यक्ति दी है
    सच में,
    आपको मेरी हर्दिक शुभकामनाएं

    ये पंक्तियाँ दिल को छू गयीं >>>>

    ग़लतफ़हमी की बेल

    लिपट जाती है पैरों से

    और मैं नहीं जा पाती तुम्हारे करिब....

    आपका
    डॉ विजय तिवारी ' किसलय '
    http://www.hindisahityasngam.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. घंटों से मैं मौन ही बैठा था..कि आपने मुझे बोलने पे मजबूर कर ही दिया...मेरा अखंडित मौन टूट गया...मौन को आपने...सच कहूँ तो बड़े अद्भुत तरीके से व्यक्त किया है...शुरू से अंत तक मैं बहता हुआ अंत के मुहाने पे आ ही रहा था..कि इक शब्द मुझे इक कंकड़ सा आ लगा...वो शब्द है "सर्प"...इसकी जगह सांप होता तो... नहीं-नहीं आप ख़ुद ही रख-कर और फ़िर पढ़-कर देखिये ना...आपके सारे शब्दों के प्रवाह में कौन सा शब्द सटीक बैठता है...सांप...या सर्प....??बाकि तो अपने आप ही मैं फिसल चुका हूँ इस कविता...पे..सच...तभी तो मौन थोडा ना.....!!

    ReplyDelete
  3. शायद मेरी मृत्यु पर ही
    निकले तुम्हारे गले से एक चीख
    और तुम पा जाओ
    शब्द और जीवन .

    अद्भुत अभिव्यक्ती ! अनंत शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  4. गहरी छूती रचना....नहीं जानता क्या प्रेरणा रही है,मगर सुंदर चित्र बना है...बधाई

    ReplyDelete
  5. agina b'ful poem.. why dnt u try bloggers standard template.. usme na jayada prblem nahi aata hai :-)

    ReplyDelete
  6. अभी कविता नहीं पढ़ा हूं.. फुर्सत में पढूंगा.. तुम्हारा टेम्प्लेट देख कर ही बस लिख रहा हूं.. ये साधारण सा टेम्प्लेट ज्यादा अच्छा लग रहा है..

    ReplyDelete
  7. मौन को स्वर देती बहुत गहरी और प्यारी रचना लगी है यह ..बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  8. सुनो तुम्हारी खामोशी
    मुझे तुम्हारे शब्दों से
    ज्यादा चुभती है .............

    ReplyDelete
  9. बहुत बढ़िया!

    ReplyDelete
  10. बहुत तेज़ होता जाता है

    झींगुरों का शोर

    मैं नहीं सुन पाती तुम्हारी धड़कन

    very differet and deep thoughts....

    ReplyDelete
  11. मेरे तुम्हारे बीच

    उग आया है

    कंटीला मौन का जंगल

    जाने कब खो गयीं

    शब्दों की राहें
    adbhut maun .
    adbhut abhivyakti

    ReplyDelete
  12. मेरे तुम्हारे बीच
    उग आया है
    कंटीला मोन का जंगल.....
    सुंदर कविता

    ReplyDelete
  13. आपकी रचना...
    ज़िंदगी के आख़िरी क्षण में कुछ खोने के बाद बहुत कुछ पाने की उम्मीद... और सबसे ज्यादा निर्माण की एक खूबसूरत, निरपेक्ष और निर्दोष कल्पना...। सुमित सिंह

    ReplyDelete
  14. ग़लतफ़हमी की बेल
    लिपट जाती है पैरों से
    और मैं नहीं जा पाती तुम्हारे करीब
    बहुत तेज़ होता जाता है

    aapki abhivyakti ke sabse khoobsoorat bhaav hain yeh..dhanyawad.

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...