08 November, 2008

बेतरतीब

आज मुझे शब्द न दो

बस थोडी खामोशी दे दो

ओक में भरकर पीने के लिए

जैसे डूबते सूरज की आखिरी रौशनी पकड़ती थी

उसी तरह से...

आज मुझे वैसे खामोशी दो

जो हम दोनों मिल कर बाँट सकें

अकेले अकेले झेलें नहीं...

वक्त हुआ करता था

जब साथ होना ही काफ़ी होता था

पर अब नहीं होता

क्यों मन मांगने लगता है

सिन्दूरी सी शामें

घर लौटते पंछियों की चहक

जंगल से आती शीतलहरी

गुलाबी गुलाबी सा चाँद

पीली रौशनी में नहाई सड़कें

एक टुकडा बादल की बारिश

रोशनदान से आती किरणों की डोर

क्यों प्यार मांगने लगता है

और देना भूल जाता है...

20 comments:

  1. आज मुझे शब्द न दो

    बस थोडी खामोशी दे दो

    बहोत खूब हक़ अदा किया है बहोत सुन्दर आपको ढेरो बधाई..

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  2. "ओक में भरकर पीने के लिए"

    बहुत ही जबरदस्त लाइन है... शानदार!

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  3. हाँ ख़ामोशी की भी अपनी ज़ुबाँ होती है!

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  4. "ओक में भरकर पीने के लिए"
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ! ओक शब्द के इस्तेमाल ने एक सादी छवि प्रस्तुत की ! कविता की सुन्दरता बढ़ गई ! शुभकामनाएं !

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  5. बस थोडी खामोशी दे दो
    ओक में भरकर पीने के लिए
    जब भी तुम्हे पढता हूँ ....सोचता हूँ कि कितना कुछ समेटे बैठी हो तुम भीतर ही भीतर ....

    क्यों प्यार मांगने लगता है
    और देना भूल जाता है...

    कितना सच कहा तुमने ......
    बस एक लाइन खटकती है...........".अकेले अकेले झेलें नहीं"...यहाँ झेले शब्द का इस्तमाल कही इस भावः कि तन्मयता को तोड़ता सा दिखता है.... अगर कुछ ओर इस्तेमाल करो यहाँ तो ?

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  6. हमेशा कि तरह एक और बढिया कविता..

    अनुराग जी का कमेंट कोट करने लायक है.. :)

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  7. उम्दा भाव-उत्तम रचना!!

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  8. कुछ रचनाएं दिल को छू जाती है कुछ उसी प्रकार लगी।
    आज मुझे शब्द न दो
    बस थोडी खामोशी दे दो
    ओक में भरकर पीने के लिए

    क्यों प्यार मांगने लगता है
    और देना भूल जाता है...

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  9. आज मुझे शब्द न दो
    बस थोडी खामोशी दे दो
    ओक में भरकर पीने के लिए
    जैसे डूबते सूरज की आखिरी रौशनी पकड़ती थी
    कोई पकड़ पाया है ???
    सिन्दूरी सी शामें

    घर लौटते पंछियों की चहक

    जंगल से आती शीतलहरी

    गुलाबी गुलाबी सा चाँद

    पीली रौशनी में नहाई सड़कें

    एक टुकडा बादल की बारिश

    रोशनदान से आती किरणों की डोर

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  10. आज मुझे शब्द न दो

    बस थोडी खामोशी दे दो

    ओक में भरकर पीने के लिए

    जैसे डूबते सूरज की आखिरी रौशनी पकड़ती थी

    उसी तरह से...

    आज मुझे वैसे खामोशी दो
    बहुत प्रभावी लिखा है. सच्ची अनुभूति.

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  11. घर लोटते पंछियों की चहक
    जंगल से आती शीतलहरी
    गुलाबी-गुलाबी सा चाँद..
    बहुत सुंदर कविता है ....बधाई

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  12. आज मुझे शब्द न दो खानमोशी दो। अच्छा ख्याल है, मेरा एक सुझाव है कृपया blogvani से भी जुडें, क्योंकि आप अच्छा लिखती हैं। आपको हर जगह होना चाहिये अच्छे सहित्यिक मंच पर। मेरी शुभकामनाएं।

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  13. मुक्त छंद की रचनाओं को वैसे भी कोई एक नया नाम तो दे ही देना चाहिये

    अच्छे श्ब्द संयोजन...

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  14. क्यों प्यार मांगने लगता है
    और देना भूल जाता है...
    खूब लिखा है आपने. बधाई. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

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  15. आज मुझे शब्द न दो

    बस थोडी खामोशी दे दो

    ओक में भरकर पीने के लिए

    ekdam dil se likhti ho tum....isliye seedhe dil tak pahunchti hai tumhari baat. bahut achche...

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  16. क्यों प्यार मांगने लगता है

    और देना भूल जाता है...

    आज मुझे शब्द न दो

    बस थोडी खामोशी दे दो

    ओक में भरकर पीने के लिए

    घर लोटते पंछियों की चहक
    जंगल से आती शीतलहरी
    गुलाबी-गुलाबी सा चाँद..

    अब मेरा भी कुछ कहना बाकि रहा क्या....मगर आपकी कवितायें वाकई"..........." हैं.......भई शब्द ही हैं सूझ रहा ना....तो मैं क्या करूँ...हर कोई अब आपकी तरह शब्दों का धनी भी नहीं ना....!!

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  17. waah janaab bahoot hi khoobsoorat rachnayeiN....


    Harash Mahajan

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