30 October, 2008

आज के दौर में...

हमसे पूछो तन्हाई की कैसी संगत होती है
हमने अक्सर दीवारों को अपना हाल सुनाया है

गली गली सन्नाटे घूमें कैसी दिवाली कैसी ईद
संगीनों को कहाँ पता कौन अपना कौन पराया है

सहमा सहमा दिन होता है और दहशत में जाती रात
पुलिस ने उसके बेटे को कल घर में घुस के उठाया है

आपस में ही लड़ जाएँ तो रोकेगा आतंकी कौन
हममें से ही कुछ लोगो ने नफरत का बीज लगाया है

बचपन में तो पढ़ा अमन का पाठ सभी ने साथ साथ
क्यों आखिर इस उम्र मेंआकर सारा प्यार भुलाया है

आग लगी है अपने वतन में कैसी बुझे बतलाओ कोई
गाँधी जैसा कोई मसीहा कहाँ अभी तक आया है

बनकर एक आवाज उठाना होगा हमको नींद से अब
जब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है

14 comments:

  1. अर्थपूर्ण कविता। शानदार पंक्तियां-
    गली गली सन्नाटे घूमें कैसी दिवाली कैसी ईद
    संगीनों को कहाँ पता कौन अपना कौन पराया है

    ReplyDelete
  2. सहमा सहमा दिन होता है और दहशत में जाती रात
    पुलिस ने उसके बेटे को कल घर में घुस के उठाया है

    यथार्थ से परिचय कराती आपकी ये रचना बहोत खूब है ... सुंदर रचना के लिए ढेरो बधाई साथ में दीवाली की भी...

    अर्श

    ReplyDelete
  3. जब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है
    शानदार लेखन लेकिन जनता को जगाने के लिये भी अब लिखना होगा क्योंकि शायद जनता को भी आदत पड़ गई सोते रहने की.

    ReplyDelete
  4. हमसे पूछो तन्हाई की कैसी संगत होती है
    हमने अक्सर दीवारों को अपना हाल सुनाया है

    गली गली सन्नाटे घूमें कैसी दिवाली कैसी ईद
    संगीनों को कहाँ पता कौन अपना कौन पराया है

    क्या बात है. बहुत बढ़िया है ....

    ReplyDelete
  5. बनकर एक आवाज उठाना होगा हमको नींद से अब
    जब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है
    बहुत बढिया और सटीक रचना ! जागना ही होगा ! शुभकामनाएं !

    ReplyDelete
  6. आग लगी है अपने वतन में कैसी बुझे बतलाओ कोई
    गाँधी जैसा कोई मसीहा कहाँ अभी तक आया है

    बनकर एक आवाज उठाना होगा हमको नींद से अब
    जब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है क्या बात है. बहुत बढ़िया है ....

    ReplyDelete
  7. आज के परिवेश के अनुरूप सार्थक काव्य है!

    ReplyDelete
  8. उम्‍मीद जि‍लाए रखना भी जरूरी है-
    जब जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है

    ReplyDelete
  9. बहुत अच्छा िलखा है आपने ।

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. बहुत अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!!

    ReplyDelete
  11. सहमा सहमा दिन होता है और दहशत में जाती रात
    पुलिस ने उसके बेटे को कल घर में घुस के उठाया है


    पता नही क्यों जगजीत सिंह की गजल याद आ गई ,लगा जैसे उसे सुनते सुनते आपने लिखा हो......आपका ये अंदाज भी अच्छा लगा

    ReplyDelete
  12. i hope this inqlaab comes real soon.. it´s long overdue! very emphatic lines indeed! thanks puja for your comment on my blog...otherwise i generally get only criticism for what i write there...keep visiting.
    did u change your image here?
    cheers

    ReplyDelete
  13. जब जागी है जनता तब ही इन्किलाब आया है
    सत्य वचन!

    ReplyDelete
  14. हमसे पूछो तन्हाई की कैसी संगत होती है
    हमने अक्सर दीवारों को अपना हाल सुनाया है

    yeh lines to bilkul mere liye likhi gayi hai :-)

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...