15 October, 2008

वो बारिशें...




सड़क पर हैलोज़ेन लैंप की पीली बारिश में भीगते हुए
कभी देखा है चाँद को गुलमोहर की पत्तियों पर फिसलते?
खास तौर से अगर वो पूर्णिमा का चाँद हो...

जानती हूँ तुमने देखा नहीं होगा
तुम सड़क पर सामने देख कर चलते हो
न की ऊपर झूलती गुलमोहर की टहनियां...

पत्तों में छिपी बारिश की बूँदें
हवा के झोंके से कैसे नन्ही बारिश ले आती हैं
मुझे तुम्हारी थोड़ी सी याद आ जाती है...

एक फुदक में सड़क के पार भागती है गिलहरी
मैं जोर से ब्रेक मारती हूँ
दिल्ली के पुराने किले में रूकती है गाड़ी...

झील में बोटिंग करते हुए खिलखिलाते हैं
कुछ अनजान चेहरे
धुंधले...वक्त और दूरी के कारण...

याद आती है वो पहली बारिश
जब पहली बार तुम्हारे साथ बाईक पर बैठी थी
और तुमने गिरा दिया था...

घर जा कर गाड़ी पार्क करती हूँ
और टहलने निकल जाती हूँ
आई पॉड पर गाना बज रहा है...

"मौसम है आशिकाना...
ऐ दिल कहीं से उनको
ऐसे में ढूंढ लाना, ऐसे में ढूंढ लाना...

13 comments:

  1. क्या बात है बहुत सुन्दर कल्पना कविता के माध्यम से ।

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  2. सड़क पर हैलोज़ेन लैंप की पीली बारिश में भीगते हुए
    कभी देखा है चाँद को गुलमोहर की पत्तियों पर फिसलते?
    खास तौर से अगर वो पूर्णिमा का चाँद हो...

    शायद दिल्ली पर इतनी सुन्दर नज़्मे पहले किसी ने नहीं लिखी होगी....शिद्दत से एहसास दिखाई देते हैं एक एक लाइन में!

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  3. जानती हूँ तुमने देखा नहीं होगा
    तुम सड़क पर सामने देख कर चलते हो
    न की ऊपर झूलती गुलमोहर की टहनियां...


    एक चित्र सा खिच जाता है.....जाने क्यों....?

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  4. तुम्हारा लिखने का अंदाज़ बहुत पसंद आता है मुझे ..बहुत सहज सा लिख देती हो ..लिखती रहो

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  5. एक फुदक में सड़क के पार भागती है गिलहरी
    मैं जोर से ब्रेक मारती हूँ
    दिल्ली के पुराने किले में रूकती है गाड़ी...

    सुन्दरतम अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !

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  6. क्या कहूँ। आपका लिखा पढकर मन को सुकून दे जाता है।
    मौसम है आशिकाना...
    ऐ दिल कहीं से उनको
    ऐसे में ढूंढ लाना, ऐसे में ढूंढ लाना
    इस गाने को तो हम अक्सर गुनगुनाते है।

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  7. बेहतरीन, आपने कुछ बोलने और लिखने लायक नहीं छोडा, मन अपने आप पुरानी यादों में गोते मार रहा है.
    धन्यवाद् इतनी बेहतरीन रचना के लिए.

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  8. याद आती है वो पहली बारिश
    जब पहली बार तुम्हारे साथ बाईक पर बैठी थी
    और तुमने गिरा दिया था...

    घर जा कर गाड़ी पार्क करती हूँ
    और टहलने निकल जाती हूँ
    आई पॉड पर गाना बज रहा है...


    आपके चिट्ठे पर आने से पहले बार बार सोचता हूं.. कि कहीं आप फिर से मुझे उसी मोड़ पर ना पहूंचा दें.. इस बार भी कुछ भूली-बिसरी यादें याद दिला दी आपने..

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  9. puja ji,
    aap badi khoobsurti sey shabdon sey yadon key chitra bana deti hain.

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  10. जानती हूँ तुमने देखा नहीं होगा
    तुम सड़क पर सामने देख कर चलते हो
    न की ऊपर झूलती गुलमोहर की टहनियां...
    Beautiful. In fact, I've only quoted a part, the whole is much too beautiful.

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  11. सड़क पर हैलोज़ेन लैंप की पीली बारिश में भीगते हुए
    कभी देखा है चाँद को गुलमोहर की पत्तियों पर फिसलते?
    खास तौर से अगर वो पूर्णिमा का चाँद हो...


    वह वह, क्या बात है पूजा जी इसे कहते हैं प्रकृति को संजोना अपने शब्दों में. मैं बहुत ही प्रभीवित हुआ इस रचना से.

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  12. "मौसम है आशिकाना...
    ऐ दिल कहीं से उनको
    ऐसे में ढूंढ लाना, ऐसे में ढूंढ लाना...
    wah bahut kuhb
    keep on writing
    regards

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  13. baarish m gulmohar......waah
    tumare jaane k baad woh joh gulmohar tha tumara...ghar aana kabhiuas gulmohar par phool aaye h

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