11 July, 2008

कविता की मौत

मेरे अन्दर रहती थी एक कविता
मुझ जैसी थी
किसी अपने ने उसपर इल्जाम लगाया
बेवफाई का

वो कविता थी, सीता नहीं
कि अग्नि परीक्षा दे सकती

पन्ने तो जल जायेंगे ही आग में
चाहे उसपर जज्बात किसी के भी लिखे हों

इसलिए
कल रात
मेरे अन्दर की कविता ने
खुदखुशी कर ली

5 comments:

  1. वो कविता थी, सीता नहीं
    कि अग्नि परीक्षा दे सकती

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।

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  2. इसलिए
    कल रात
    मेरे अन्दर की कविता ने
    खुदखुशी कर ली

    इस कविता को जिंदा रहने दो ...जब तक ये रहेगी साँस में खुशबु रहेगी ...ओर कागज पर जिंदगी.......

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  3. ऐसा न करें। कविता को जिंदा रहने दें।

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  4. न अभिव्यक्ति का अंत होता है और न ही पन्नो के जलने पर भाव धुआं होते हैं.

    न जाने किस से, किस बात पर नाराज़ हो.

    देखो! इतने गुस्से में भी कविता ही कह डाली है.

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  5. kavita to jazbaton ko mila alfazon ka roop hain...agar kavita ne khudkushi kar li matlab jazbat bhi dafn ho gaye...ye to na-insafi aur kisi ke saath nahi...khud hi ke saath hain...

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