22 April, 2008

मंथन

आज मैंने बहुत रिसर्च की आइपीअल के बारे में ताकि मैं अच्छे से ये पोस्ट लिख सकूं। पता नहीं किसी को दिख रहा है या नहीं पर ये match जो की सिर्फ़ और सिर्फ़ मार्केटिंग का एक भद्दा तरीका है...क्रिकेट का कर्मयुद्ध कहलाने वाला ये नाटक घरों में युद्ध जरूर कराएगा।

इसकी और भी हज़ार बुराइयाँ नज़र आती हैं मुझे पर जो सबसे पहले दिखता है वो ये है की ये घर में रिमोट की लड़ाई करवाएगा। चाहे जितने भी सड़े हो हमारे टीवी में चलने वाले कचरा सीरियल पर हमारी गृह लक्ष्मी उन सीरियल की रोजाना खुराक के बिना नहीं रह सकती। अब ये सारे match उसी टाइम पर होंगे। ऐसे में पति पत्नी में झगड़ा नहीं होगा तो क्या होगा...कौन सा पति अपनी पत्नी को रिमोट थमने देगा जब क्रिकेट आ रहा है। पत्नियों को तो वैसे भी दोयम दर्जा ही मिलता है, उनकी क्या बिसात की पति से रिमोट छीन ले।

या अगर घर में पत्नी की चलती है तो पति बेचारा किसी ऐसे दोस्त को ढूंढेगा जिसके यहाँ match देख सके, किसी भी परिस्थिति में घर में अच्छा माहौल नहीं बनने वाला है। कोरी बजरिकता वाले इन खेलों में कोई कैसे दिल लगा सकता है ये मेरी समझ से परे है।

अब मैं आती हूँ दूसरे मुद्दे पर...ये नौटंकी आख़िर है क्या...नयापन परोसने की होड़ में आख़िर हमारा मीडिया कहाँ तक जायेगा? इस पतनशील समाज में क्या मीडिया अपनी जिम्मेदारी से इसी तरह मुँह चुराता रहेगा। और क्या हमारे देश के लोगो के पास कोई भी काम नहीं है कि कुछ भी चलते रहता है टीवी पर और वो देखते रहते हैं। आलस से सृजनशीलता का ऐसा हनन होता है कि लोग कुछ सोचना ही नहीं चाहते, जो भी entertainment के नाम पर देखने को आता है देखते रहते हैं।

पहले भी काफ़ी हो हल्ला उठा था कि खिलाड़ी बिकाऊ हौं, खास तौर से जब इंडिया कोई match हार जाती थी तब तो शामत आ जाती थी, आइकन खिलाड़ियों को भी कहाँ छोडा जाता था इस बहस के बाहर। और आज जब खुलेआम बोली लगाई गई तो सब चुप थे कोई आवाज नहीं उठी कहीं से भी। इस तरह एक खिलाड़ी जब सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने लिए लड़ेगा तो देशप्रेम कि भावना कहाँ जायेगी, क्या फ़िर से कभी भारतीय टीम एक संगठित टीम कि तरह खेल पाएगी? क्या सब एक दूसरे को प्रतिद्वंदी कि नज़र से नहीं देखेंगे?

और इतने होहल्ले का मकसद क्या है? इतना पैसा फूंक कर क्या मिलेगा...क्या हासिल हो रह है किसी आम आदमी को? बस फुलझड़ियों कि तरह कुछ देर का आकर्षण ...कई सवाल और जवाब कुछ भी नहीं।

5 comments:

  1. माफ कीजिएगा और मेरी बात को एक सकारात्मक आलोचना समझिएगा। आपने जो पहली बात रखी है कि रिमोट के लिए घरों में लडाई होगी तो कई टीवी चैनल इसे देश के घर घर तक पहुंचा चुके हैं। आपकी बात में कोई नयापन नहीं। दूसरे यह कि खिलाडियों की बिक्री और देशभवना पर इसके असर पर भी बहर होती रही है। इसे भी कई टीवी चैनल परोस चुके हैं। इसमें भी नयापन नहीं। रही बात आईपीएल की तो बाजारवाद की देने है यह। कुछ लोग कमाना चाहते हैं और कुछ गंवाना चाहते हैं। इसलिए यह तमाशा है। हम इसे इस रूप में भी देख सकते है। मैं आपकी पोस्टें बराबर पढता हूं। इस बार थोडा निराश जरूर हुआ हूं। मैं फिर अपनी बात दोहराता हूं इसे खुली आलोचना समझें। धन्यवाद

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  2. अबरार जी, पहले तो शुक्रिया अदा करना चाहूंगी की आप मेरे ब्लॉग पर अक्सर आते हैं. अब मैं इस पोस्ट के बरे में दो बातें साफ करना चाहूंगी...पहली तो ये की मैं किसी भी विषय पर तब ही लिखती हूँ जब मैं प्रभावित होती हूँ. आमतौर पर घरों में रात का वक्त औरतों के टीवी देखने का होता है, ये हाल में ही हुआ है की आईपीएल के मैच के कारन कुछ दिन तो वो कुछ नहीं कह रही है, पर असंतुस्ट हैं और इसका असर मेरे घर पर पड़ेगा ये मैं देख रही हूँ. अगर आप देखेंगे तो पहला वाकया है की मैंने रिसर्च की ...ये इसलिए क्योंकि मुजे इस खेल से कोई मतलब नही रहता है.
    और दूसरी बात नयापन की तो बस ये कहना चाहूंगी की ये मेरा ब्लॉग है, आजतक या हिंदुस्तान टाईम्स नहीं की ख़बर छापनी है सबसे पहले.
    मेरे ख्याल से आपकी दोनों शिकायतों के clarification हो गए होंगे

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  3. सब बाजार का हल्ला है पूजा जी ,सबकी पौ बारह है ,खिलाड़ी की,advertizar की ,stadium की, अम्पायर की ,टी.वी. की.....चलने दीजेये.......इस तमाशे से भी लोग जल्दी उब जायेंगे

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  4. हँसते हँसते लिख रहा हूँ. आलोचक और रचियता का संवाद बेहद रोचक है.

    आंखों के आगे बेबस आलोचक के सामने रचनाकार का साडी का पल्लू कमर में खोंस कर खरी खरी सुनाने का द्रश्य जो बार बार आ रहा है .

    चलो अब अद्रश्य ब्लॉगर भी हंस लिए है, अब सुलह हो जानी चाहिए.

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  5. aalochna ko mukht hokar sweekar karne laayak badappan shayad abhi hammein nahin aaya hai.
    par ek din itni maturity aa jaayegi shayad.tab tak...bear with me :)
    i am not here to fight with someone.apni baat kahti hun jab jaise man karta hai. thodi akkkhad hun shayad...bas

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