29 March, 2008

एक रंग ऐसा भी

नूपुर बोले धीमे सुर में
आया किसना री...
हाय! लजा कर लाल हुयी मैं
उसने जो पकड़ी चुनरी...
आज तो होली नहीं है
मनुहार कितनी की...
भाग निकली जैसे ही मैं
उसने मारी पिचकारी...
भीगी साड़ी जो मैं दौड़ी
रंग लेके भी...
छलिया किसना रंग डाला
मेरे रंग से ही...
गाल रक्तिम, मंद स्मित मैं
बनूँ किसलय सी...

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