20 July, 2007

जानती हूँ कि तुम मेरे नहीं हो
फिर भी तुम मेरी जिंदगी हो

हज़ार आंसुओं के बदले जो मांगी मैंने
तुम वो दो लम्हे की हंसी हो

हर अहसास जो टूट टूट कर लिखता है मुझमें
तुम वो अनकही शायरी हो

मैं नहीं जानती रिश्तों की परिभाषाएं
मेरे लिए जो हो तुम्ही हो

दर्द के गहरे इस समंदर में
तुम इकलौती कश्ती हो

क्यों लगता है कि तुम मेरे हो
जब कि तुम मेरे नहीं हो

८.७.०५

9 comments:

  1. bahut hi badhiya..
    aapse ye kavita udhaar chaahunga..
    sach me superb..

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  2. puri hi ghazal ek nagina hain...gehrai bhari baat...kam shabdo mein...aur bilkul sidhi sidhi baat...

    first sher of the ghazal makes a
    gr8 impact...

    these 3 are superb...

    जानती हूँ कि तुम मेरे नहीं हो
    फिर भी तुम मेरी जिंदगी हो

    मैं नहीं जानती रिश्तों की परिभाषाएं
    मेरे लिए जो हो तुम्ही हो

    क्यों लगता है कि तुम मेरे हो
    जब कि तुम मेरे नहीं हो

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  3. पूजा जी, आखिरी दो पंक्तियाँ बहुत बढ़िया हैं। शायद आप कहीं और भी लिखती हैं?

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  4. मैं नहीं जानती रिश्तों की परिभाषाएं
    मेरे लिए जो हो तुम्ही हो

    दर्द के गहरे इस समंदर में
    तुम इकलौती कश्ती हो
    बहुत सुन्दर। लिखती रहें। सस्नेह

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  5. @aalok, main www.laharein.blogspot.com aur www.poemsnpuja.blogspot.com par bhi likhti hun.
    aap mere blog meri profile me bhi dekh sakte hain

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  6. पूजा जी, जानकारी के लिए धन्यवाद। शायद मैंने लहरें ही देखा था। शुक्रिया।

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  7. अच्छी रचना. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
    ---
    ultateer.blogspot.com

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  8. हज़ार आंसुओं के बदले जो मांगी मैंने
    तुम वो दो लम्हे की हंसी हो>

    सुंदरतम।

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  9. aap ke kavitayoN meN paripakvita hai, kisi magazine me kyoN nahiN dikhiN

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