12 July, 2007

एक बारिशों की शाम

लफ़्ज़ों का लिबास ओढ़े हुये
कुछ नन्हे नन्हे अहसास मिले
फुदक फुदक कर गौरैया के बच्चों सा
हमारे साथ साथ कुछ दूर चले
सड़क पर गीली गीली रौशनी बिखरी हुयी थी
हम बैठे रहे एक लैम्पोस्ट के नीचे
मैं और निहार...कितनी देर तक मालूम नहीं
उनकी शरारतों को देखते रहे
हमें भी अपना बचपन याद आ रहा था
तब जब कि बचपन हुआ करता था
जब बारिशों में भीगने के पहले सोचना नहीं पड़ता था
जब ख्वाहिशों में भीगने के पहले सोचना नहीं पड़ता था
कितनी बातें...कितनी यादें
मेरी...उसकी...तुम्हारी...आनंद, अंशु, प्रवीण
सबको याद किया हमने
उन नन्हे अहसासों को देखते हुये
सोचा...मैंने...निहार का पता नहीं
कि दोस्त जिंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा होते हैं
और वो हमारे साथ हमेशा होते हैं
पास रहे या ना रहें

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