26 June, 2007

the taste of cigarette

मुझे सिगरेट का taste अच्छा लगता है...मेरे कलीग ने कहा कि ये तो नया फंडा है ये taste की बात तो पहली बार सुन रहा हूँ...

और मैं कल रात की बात सोच रही थी...किसी से बात कर रही थी मैं और बता रही थी कि जिंदगी में कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो खाने के लिए नहीं बनी होती हैं पर उनका taste होता है और ऐसी ही चीजों में तो मज़ा है...मैंने examples दिए...बचपन में स्लेट पर लिखने के लिए पेंसिल आती थी...हलकी भूरी रंग की, उसे खाने में जितना मज़ा आता था लिखने में नहीं, मैं तो शायद दसवीं तक भी कभी कभी कुतर जाती थी। इसी तरह 8th में मुझे पेंसिल की नोक खाने का चस्का लगा था...इसके अलावा जब भी बारिश होती है और मिट्टी की सोंधी गंध उड़ती है तो बहुत मन करता है की इस गंध का स्वाद कैसा होगा...

ऐसा ही एक अनजाना सा स्वाद धुएँ का होता है...गाँव में जब मिट्टी के चूल्हे में शाम को ताव दिया जाता था और पूरा गोसाईंघर धुएँ से भर जाता था...उस वक़्त मन करता था जबान पे उसे लेने का...दार्ज़लिंग के रस्ते में सड़क के दोनो ओर उंचे देवदार के पेड़ थे...धुंधले से कोहरे में लिपटे हुये, उनके तने कि छाल थोड़ी भीगी सी थी, वैसा ही कुछ होता धुआँ अगर सॉलिड होता तो...वो पेड़ जैसे धुएं के बने थे...
धुएँ पर मैं हमेशा से मुग्ध रही हूँ...

ये तो रही बचपन की बात...उफ़ वो प्यारे प्यारे दिन..जब हम कितने अच्छे हुआ करते थे...सिगरेट से नफरत किया करते थे...और सिगरेट पीने वालो से भी(अभी भी कोई खास प्यार नहीं हुआ है हमें इस category के लोगों से)

अनुपम...तुम्हारे कारण सब बदला...मेरी पहली ट्रेनिंग थी...जब तुमसे मिली...वो हमारा स्टूडियो, विक्रम, संदीप सर और तुम...एक खिड़की और कोने पर तुम्हारी टेबल...वहाँ बैठ के काम करने का मज़ा ही कुछ और था...और फिर बालकनी में जा के तुम्हारा धुएँ के छल्ले बनाना...लंच के बाद की वो गपशप...कितना कुछ सीखा मैंने तुमसे...और इस कितने कुछ में था...एक freedom...अपनी जिंदगी को waste करने की freedom जो हर smoker को होती है...पता नहीं क्यों पर लगा की ठीक है...i mean मैं क्यों किसी से सिर्फ इसलिये नफरत करूं की वो सिगरेट पीता है...

और अभी कुणाल की marlboro lights एक कहानी सी है जो वहीँ से शुरू होती है...धुएँ के taste से...मेरे पहले कश से...जो अच्छा लगा...क्योंकि ये तो मैं जाने कब से ढूँढ रही थी...ये और बात है की मैंने सिगरेट शुरू नहीं की...पर हाँ होंठों पर जो धुएँ का अंश रह जाता है ना...अच्छा लगता है :)

2 comments:

  1. मुझे तो पहली बारिश पर मिट्ठी की सुंगंध और नये मिट्ठी के घड़े के पानी स्वाद कभी नहीं भूलता।
    पर सिग्रेट के धुऐं का स्वाद ... पैसिव स्मोकर तो हूं ही। पर स्वाद ऐ... प्रेम में भी नहीं ... आपको ही को मुबारक हो ...

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  2. किसी चीज़ के पीछे बहुत दिन से आप भाग रहे हों और अचानक से वह मिल जाये तो सुखद अनुभव होता है...धुआं मुझे अपनी तरफ खींचता था...वैसे भी मैं अपनी इन्द्रियों में थोड़ी घाल मेल करते रहती हूँ...सिर्फ देख कर, सुन कर छू कर मेरा मन नहीं भरता, जबान पर स्वाद भी चाहिऐ होता है, ऐसी कोई चाह होना थोडा अजीब तो है,पर प्रेम से इसका कोई संबंध नहीं है, ये बस अलग होने के अधिकार को समर्थन देता है। मेरा सिगरेट का पहला कश सिर्फ शौकिया लिया गया था...मुझे अच्छा लगा था और मैंने फिर नहीं पी...प्रेम होता तो सिलसिला जारी रहता।

    इन चीजों का अनुभव बस एक जिज्ञासा को शांत करता है...एक बालसुलभ उत्सुकता...बस

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