28 June, 2007

फिर वही दर्द फिर वही गाने

फिज़ा भी है जवां जवां, हवा भी है रवाँ रवाँ
सुना रहा है ये समां सुनी सुनी सी दास्ताँ

बुझी मगर बुझी नहीं...ना जाने कैसी प्यास है
करार
दिल से आज भी ना दूर है ना पास है
ये खेल धूप छांव का..ये पर्वतें ये दूरियाँ
सुना रहा है ये समां सुनी सुनी सी दास्ताँ

हर एक पल को ढूँढता हर एक पल चला गया
हर एक पल विसाल का ,हर एक पल फिराक का
कर एक पल गुज़र गया, बनाके दिल पे एक निशां
सुना रहा है ये समां,सुनी सुनी सी दास्ताँ

पुकारते हैं दूर से, वो काफिले बहार के
बिखर गाए हैं रंग से,किसी के इंतज़ार में
लहर लहर के होंठ पर, वफ़ा की हैं कहानियाँ
सूना रहा है ये समां सुनी सुनी सी दास्ताँ

वही डगर वही पहर वही हवा वही लहर
नयी है मंजिलें मगर वही डगर वही सफ़र

नयी है मंजिलें मगर वही डगर वही सफ़र
नज़र गयी जिधर जिधर मिली वही निशानियाँ
सुना रहा है ये समां सुनी सुनी सी दास्ताँ...

1 comment:

  1. bahut dino baad suna...shabd shaayad pahli baar padhe...

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