10 May, 2007

शिक़ायत तो मैंने खुदा से भी नहीं की
तुम पर तो मेरा कोई हक भी नहीं है

एक तो तनहाईयाँ उसपर अजनबी से लोग
तुम बिन जीने की आदत भी नहीं है

बस इसी बात से तसल्ली होती है मुझे
मुहब्बत तो नहीं पर तुझे मुझसे नफरत भी नहीं है

तुम होते तो शायद मना करते रोने से
इस खारे पानी की कोई कीमत भी नहीं है

जितने ख़्वाब थे सब किरिच किरिच बिखरे हैं
नए ख्वाब देखने की हिम्मत भी नहीं है

उस चौराहे से कितनी बार गुजरे हो तुम भी, मैं भी
कभी मिल जाओ तुम ऐसी अच्छी मेरी किस्मत भी नहीं है

dated:12th march 03

2 comments:

  1. शिक़ायत तो मैंने खुदा से भी नहीं की
    तुम पर तो मेरा कोई हक भी नहीं है
    एक तो तनहाईयाँ उसपर अजनबी से लोग
    तुम बिन जीने की आदत भी नहीं है

    Beautiful Lines...

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