10 May, 2007

पहला

जिंदगी की तन्हाईयाँ
जिंदगी की खामोशियाँ
जिंदगी की रुसवाईयाँ
तुम्हारी कमी पागल कर देगी मुझे

हैं अजनबी से लोग
हैं किस सरजमी के लोग
क्यों इतना शोर करते हैं ये
तुम्हारे अपनेपन कि याद तोड़े जाती है मुझे

तुम्हारे आने का इंतज़ार
हर शिशिर में हर बहार
बिना आहट के कितनी बार
चौंक कर दरवाजे पर खड़ा पाती है मुझे

भूलने कि कोशिश
वैसी ही है जैसे
जीने की कोशिश
तुम बिन हँसने की ख्वाहिश
करती हूँ पर कर नहीं पाती


10th march 03

1 comment:

  1. khubsurat...aap ki likhai mein khas baat ye lagi ki bilkul paani ke bahav ki tarah sidhi behti hain...

    loved dis one most...

    हैं अजनबी से लोग
    हैं किस सरजमी के लोग
    क्यों इतना शोर करते हैं ये
    तुम्हारे अपनेपन कि याद तोड़े जाती है मुझे

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